विशाल पशुचिकित्सा शिविर, पशु प्रदर्शनी एवं पशुपालक संगोष्ठी का आयोजन
- परंपरागत ज्ञान को अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित करने के लिए इसका दस्तावेजीकरण बहुत ही आवश्यक – मोहन नागर
भारत भारती। नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर,पशुपालन डेयरी विभाग, भारत भारती जामठी, बैतूल मध्यप्रदेश के संयुक्त तत्वाधान में रविवार 29 अगस्त को प्रात: 9 बजे से 4 बजे तक विशाल पशु चिकित्सा शिविर, पशु प्रदर्शनी एवं परम्परागत पशुचिकित्सा पद्धति द्वारा पशुओं का उपचार विषय पर पशुपालक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में बैतूल हरदा लोकसभा क्षेत्र के सांसद श्री दुर्गादास उइके, डॉ.सीता प्रसाद तिवारी कुलपति नानाजी देेशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर, डॉ. आर.के. मेहिया, संचालक, पशुचिकित्सा सेवायें म.प्र. शासन भोपाल, डॉ. उमेश चंद्र शर्मा, अध्यक्ष पशु चिकित्सा परिषद्,नई दिल्ली, श्री मोहन नागर, संचालक मण्डल सदस्य नानाजी देशमुख पशुचिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर,श्री बुधपाल सिंह ठाकुर जनजाति शिक्षा के राष्ट्रीय सहसंयोजक, स्थानीय जनप्रतिनिधि एवं क्षेत्र के पशुपालक उपस्थित रहे।
इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के 35 अधिष्ठातागण, संचालकगण एवं विषय वस्तु विशेषज्ञों तथा स्नातक, स्नातकोत्तर छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही। इसमें पशुपालकों के पालतु पशुओं, गंभीर रोगों से पीडि़त, बांझ पशु एवं शल्य क्रिया के पशुओं को शिविर में उपचारित किया गया। इसी के साथ-साथ विभिन्न पशुचिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय एवं पशु विभाग द्वारा प्रदर्शनी का भी आयोजन किया । कार्यक्रम की श्रखंला में पराम्परागत पशु चिकित्सा पद्वतियों के माध्यम से पशुओं के उपचार विषय पर एक पशु-पालक संगोष्ठी का आयोजन भी किया जिसमें जिला बैतूल एवं समीपस्थ जिलों के पशुपालक उपस्थित हुए।
इस अवसर पर कार्यशाला का शुभारंभ मां सरस्वती की वंदना के साथ हुआ तथा मंच पर विराजित अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया गया।
कार्यक्रम की प्रस्तावना में भारत भारती शिक्षा समिति के सचिव श्री मोहन नागर ने कहा कि मानव चिकित्सा, पशु चिकित्सा और मौसम विज्ञान के जानकार आज भी हमारे ग्रामों में विद्यमान हैें। लेकिन आधुनिक विज्ञान के कारण यह परंपरागत ज्ञान धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। इसे अगली पीढ़ी में स्थानान्तरित करने के लिए इसका दस्तावेजीकरण बहुत ही आवश्यक है। इस ज्ञान के दस्तावेजीकरण से संबंधित प्रस्ताव वर्ष 2019 में पारित हुआ जो कोरोना महामारी के चलते पिछड़ गया। 70 प्रतिशत दस्तावेजीकरण होने पर हम इस अभियान को सफ ल मानेंगे। यह कार्यक्रम छात्र, किसान, पशुपालकों के लाभ हेतु आयोजित किया गया है। पशुपालकों के संपर्क में रहकर पशु चिकित्सा करने पर परंपरागत औषधियों का ज्ञान होगा। जो परंपरागत ज्ञान है उसे आधुनिक बनाना और आधुनिक विज्ञान में ज्ञान को देशानुकूल बनाना हमारा ध्येय होगा।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सांसद श्री दुर्गादास उइके ने कहा कि पशुधन हमारी उच्चता का प्रतीक रहा है। पशुपालन हमारी आर्थिक उन्नति का द्योतक है। आजादी के 75वें वर्ष में आयोजित अमृत महोत्सव पर 75 स्थानों पर इस तरह के आयोजन हों।
मंच से अपने वक्तव्य में नानाजी देशमुख विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलपति श्री डॉ.सीता प्रसाद तिवारी ने कहा कि आजादी के इस अमृत महोत्सव के अन्तर्गत यह प्रथम आयोजन है। विश्वविद्यालय के संस्थापक श्री नानाजी देशमुख का मानना था कि कृषक का व्यवसाय पशुधन और कृषि पर निर्भर होता है। श्री तिवारी ने बताया कि देश में आवारा गौवंश के लिए तीन हजार गौशालाओं के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है जिसमें एक हजार एक सौ गौशालाओं का निर्माण पूर्ण हो चुका है। मध्य प्रदेश में आवारा पशुओं की संख्या लगभग तीन करोड़ है। अत: इन पशुओं के संरक्षण और संवर्धन के उद्देश्य से गौशालाओं के संचालन किया जावेगा। इसी के साथ कृत्रिम गर्भाधान से नवीन नस्ल की तैयारी, बीमार पशु की चिकित्सा, गौवंश संवर्धन और पंचगव्य से निर्मित उत्पाद की मात्रा बढेगी जिससे रोजगार के अवसरों में बढोतरी होगी। श्री तिवारी ने पशुपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि पशुओं के उपचार में एलोपेथी दवाइयों पर पशु की कीमत से अधिक खर्च हो जाता है। इससे पशुपालक पशुधन को अपनाने से कतराने लगते हैं। इसके स्थान पर आवश्यकता है कि पारंपरिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अपनायी जाये जो बहुत ही मितव्ययी है और इसके जानकार ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। और साथ ही इन इलाजों का दस्तावेजीकरण हो जिससे आने वाली पीढ़ी को भी लाभ मिले। पशुधन आय का सबसे बड़ा संसाधन है। बैतूल जिले में पशुधन की अधिकता भी है। अत: यहाँ के भूमिहीन किसान स्वसहायता समूहों के माध्यम से बकरी पालन, मुर्गीपालन, मत्स्यपालन आदि व्यवसाय करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
पशु चिकित्सा परिषद्,नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. उमेश चंद्र शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि श्री नानाजी देशमुख ने कहा था कि मुझे न तो ईश्वरीय पद चाहिए और न कोई सुख चाहिए। मुझे दुख में जीवित पशुओं की पीड़ा का उपचार चाहिए। भारत में 32 करोड़ लोग दूध के व्यवसाय पर आश्रित हैं। ऐसे में दुधारू और अन्य पालतू पशुओं की देखभाल एक बड़ी जिम्मेदारी है। हमने इसकी अनदेखी की तो भारत के वैभव में कमी आयेगी। इस क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान यदि वैज्ञानिक रूप से लाभकारी हो तो उसका उपयोग अधिक से अधिक करें।
कार्यक्रम के समापन सत्र में बैतूल जिले के विभिन्न ग्रामों से आये पारंपरिक चिकित्सा और औषधियों के 40 जानकार भी सम्मिलित रहे जिन्होंने वनों में पाये जाने वाले कन्द, जड़, पेडों की पत्ती, छाल, फ ल आदि के विभिन्न जटिल बीमारियों पर उपयोग बताये। शिविर में बैतूल जिले के कुल 94 पशुओं का पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से इलाज एवं शल्य क्रिया की गई। इस अवसर पर पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय जबलपुर, रीवा, मत्स्य विभाग जबलपुर, भारत भारती गौशाला के द्वारा प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी से पशुपालक, किसान, विद्याथी, व्यापारी आदि सैंकडों लोग लाभान्वित हुए।
कार्यशाला में परंपरागत पशु चिकित्सा पर आधारित साहित्य पारंपरिक माध्यम से पशु चिकित्सा एवं उपचार, और मत्स्य पालन उत्तम आय का साधन पुस्तकों का विमोचन किया गया।
जाड़ीढाना के श्री जमदूसिंह अहाके ने पशुओं में दस्त की बीमारी पर बकायन की पत्ती का उपयोग बताया, वहीं कान्हावाड़ी के ज्ञानसिंह ने पशुओं में बुखार आने पर महारूख वृक्ष की छाल, आम की छाल और जामुन की पत्ती का चूर्ण असरदार बताया। पशुओं के अंगों में सूजन और घाव हो जाने पर जाड़ीढाना के आनंदराव यादव ने शूकरकन्द घिसकर लगाने का उपाय बताया।
अन्त में बैतूल पशु चिकित्सा विभाग के श्री डॉ. विजय पाटिल ने आयोजन को सफ ल बताया और कार्यक्रम में उपस्थित सभी अधिकारियों, चिकित्सा टीमों, पारंपरिक पशु चिकित्सा के जानकारों व उपस्थित गणमान्य नागरिकों का आभार व्यक्त किया।